एक गाँव किताबों का

 


शेक्सपीयर वाली यह बाइंडिंग तो आज ही आयी है। बिल्कुल नयी है। लगता है किसी ने बहुत सहेज कर रखी होगी…क्नूट वाली किताब 1930 की बाइंडिंग है। यह कहीं और शायद  मिले

पश्चिमी नॉर्वे के खूबसूरत फ्योर्ड (पतली खाड़ीऔर ग्लेशियर के रास्तों में एक बोर्ड दिखा– ‘किताबों के गाँव के लिए यहाँ मुड़ें उस वीराने में कुछ भेड़बकरियों के अलावा कुछ दिख नहीं रहे थेतो कौतूहल हुआ कि यहाँ कैसा किताबों का गाँव?

कुछ चार किलोमीटर अंदर गाँव तक पहुँचने पर देखा कि फ्योर्ड के किनारे किताबें ही किताबें हैं। सारी की सारी पुरानी किताबें। उन किताबों के साथ दुकानदार बमुश्किल तीनचार थेमगर हर घर में सलीके से किताब रखे थे। आप अंदर जाएँकिताबें उठाएँऔर उसका मूल्य एक नंबर पर भेज दें।

कई गाड़ियाँ लगी थीऔर लोग किताबें उठा कर झोले में भर रहे थे। हार्डबाउंड किताबें सौ क्रोनरपेपरबैक पचास क्रोनरऔर अधिकांश थ्रिलर आदि बीसतीस क्रोनर की थी।

यहाँ नयी किताबें नहीं मिलती?”, मैंने आखिरी दुकान में बैठी एक वृद्ध महिला से पूछा

नहीं

लेकिन इतनी दुकानें हैं तो रखी जा सकती हैं

नयी किताबें तो शहरों में मिल ही जाती हैं और उनका वितरण हमारे बस का नहीं

आप लोगों का तो व्यवसाय किताबों का ही है

नहीं नहीं। यहाँ तो लोग खेतीबाड़ी करते हैं। दूसरे काम करते हैं। किताबें बेचना हमारा काम नहीं

मुझे तो सिर्फ़ किताबें ही दिख रही हैं

यह हमने अपने गाँव को नया शक्ल दिया है। अब यह पिछले पच्चीस वर्षों से किताबों का गाँव कहलाता है। पर्यटक इसी बहाने देखने आते हैंऔर इन पुराने घरों का रखरखाव हो जाता है

मैंने ग़ौर किया कि हर दुकान में पेमेंट का एक ही नंबर है। वह नंबर डालने पर ‘बुकबीएन’ (किताबशहरका नाम  रहा है। वह वृद्ध महिला भी मुझसे पैसे लेने के बजाय उसी खाते में जमा करने कह रही थी।

इससे जो भी आय होती हैउसे हम इन मकानों की देखभाल आदि में लगाते हैं

यानी ये दुकानें भी आपकी नहीं हैं?”

ये पुराने घर थे जो हमारे पूर्वजों के ही बनाए हैं। मगर अब कई नए घर बन गए हैं। हमने यह फ़ैसला किया कि इन घरों में किताबें भर दी जाए। अब कुछ पंद्रहबीस लाख किताबें यहाँ जमा हो गयी हैं। वह देखिएअभीअभी किताबें लेकर आयी है

मैंने देखा कि एक युगल अपनी गाड़ी में कई डब्बे किताबें भर कर लाए थे। उन्होंने बताया कि वे पास ही के शहर में रहते हैं और आसपड़ोस से किताबें जमा कर रखते हैं। कभी इस रास्ते से गुजरते हुए आकर दे जाते हैं।

मुफ्त में?”

हाँ। ये किताबें लोगों ने मुफ्त में ही दी है। यहाँ इसी तरह लोग किताबें दे जाते हैं।

आपलोग एक बड़ा पुस्तकालय क्यों नहीं बना लेते?”

पुस्तकालय तो है ही। आप कोई भी किताब उठा कर पढ़ें। वापस रख दें। उसका मूल्य नहीं है। मगर इस गाँव आखिर कौन रोजरोज पढ़ने आएगाअगला शहर तीस किलोमीटर दूर हैऔर वहाँ पहले से पुस्तकालय है।”, उन्होंने हँस कर कहा

मैंने कुछ दुर्लभ हार्डबाउंड किताबें उठा ली। कई अन्य पर्यटक जो गर्मी छुट्टियों में नाव चलानेमछली मारनेपहाड़ चढ़नेसाइकल चलाने आए थेवे अब किताबें बाँध कर ले जा रहे थे। बच्चे अपने कॉमिक्स और बाल उपन्यास तलाश रहे थे। एक मनोहारी इंस्टाग्राम सेल्फी प्वाइंट अचानक किताबों की दुनिया में बदल गया थाऔर लोग किताबों के साथ तस्वीर ले रहे थे।

कमाल की बात लगी कि यह बदलाव किसी महान लेखकराजनीतिज्ञप्रोफेसर या कलाविद ने नहींबल्कि भेड़बकरियाँ चराने वाले ग्रामीणों ने मिल कर किया था।

येनी का किरदार रोचक है। तुमने इब्सन का नोरा किरदार पढ़ा होगा। कुछ उसी की तरह…”, एक अधेड़ ग्रामीण ने मेरे हाथ में एक किताब देख कर कहा

आप लगता है खुद भी बहुत किताबें पढ़ते हैं?”

यहाँ हमारे पास बहुत समय है…”, उन्होंने हँस कर कहा

मुझे भी लगा कि किताबों के शौक के लिए कोई प्रोफेसरवकीलडाक्टर आदि होना ज़रूरी नहीं। इसके लिए तो एक खूबसूरत गाँव होना काफ़ी हैजहाँ किताबें ही किताबें हों।

1 Comments

Post a Comment
Previous Post Next Post