अंग्रेज़ न आते तो क्या होता?

  फरवरी, 1786. कलकत्ता 

सर विलियम जोंज़ (1746-1794) अल-सुबह अपने गार्डन रीच बंगले से टहलते हुए फोर्ट विलियम की ओर जा रहे थे। उस फोर्ट विलियम की ओर, जहाँ अब संपूर्ण भारत की शक्ति केंद्रित थी। वहाँ लहराता झंडा इस बात का द्योतक था, कि भारत अब अंग्रेज़ों का गुलाम था। 

फ़ोर्ट विलियम के दरवाज़े पर एक बग्घी उनका इंतज़ार कर रही थी, जिस पर बैठ कर सर जोंज़ सुप्रीम कोर्ट पहुँचे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने स्नान किया, कपड़े बदले और अंग्रेज़ी नाश्ता किया। उस समय सुबह के सात बजे थे, जब एक संतरी ने आकर कहा,

‘महोदय! पंडित रामलोचन आपसे मिलने आए हैं।’

‘उन्हें अंदर भेजो। मैं भी उनकी ही प्रतीक्षा कर रहा था।’

लगभग एक घंटे तक पंडित रामलोचन उन्हें कालिदास के अभिज्ञान शाकुन्तलम् के पदों का अर्थ समझाते। विलियम जोंज़ यूँ तो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे, किंतु पंडित के समक्ष वह एक विद्यार्थी बन जाते। कठिन शब्दों का संधि-विच्छेद समझते। पूछते कि अमुक पात्र संस्कृत की बजाय प्राकृत में क्यों संवाद कर रहे हैं? 



इस एक घंटे की कक्षा के बाद मुंशी बहमन उनके कक्ष में प्रवेश करते हैं, और एक घंटे फ़ारसी की पढ़ाई चलती है। विलियम जोंज़ का हर वक्त कीमती था, और वह भारत को जैसे आत्मसात कर लेना चाहते थे। यहाँ की संस्कृति, यहाँ के साहित्य और यहाँ की भाषाओं का। यह पूरी सूची उन्होंने उसी वक्त तैयार कर ली थी, जब वह जहाज से भारत आ रहे थे।

ठीक नौ बजे वह न्यायाधीश का भेष धारण करते हैं और कचहरी में बैठ जाते हैं। तीन बजे तक कार्य कर वह पुन: बग्घी से घर लौटते हैं, जहाँ उनकी पत्नी एना मारिया प्रतीक्षा कर रही हैं। भोजनोपरान्त वह रोज की तरह तांगे पर बैठ कर हुगली नदी के किनारे शिबपुर जैविक उद्यान की सैर पर निकलते। लेकिन, उस दिन कुछ और योजना थी। 

उन्हें अंग्रेज़ अफ़सरों के समक्ष भारतीय संस्कृति पर एक भाषण देना था। सुप्रीम कोर्ट के ग्रैंड ज्यूरी हॉल में बैठे कुछ तीस-चालीस व्यक्तियों के समक्ष वह कहते हैं,

‘संस्कृत, भले ही एक प्राचीन भाषा है, यह ग्रीक से अधिक परिपक्व, और लैटिन से अधिक समृद्ध है। दोनो ही भाषाओं से यह अधिक परिष्कृत भी है। मैंने दर्शनशास्त्र का अध्ययन किया, तो मुझे लगा कि पायथागोरस और प्लेटो के सिद्धांत इनसे कितने मिलते-जुलते हैं। मुझे लगता है कि ग्रीस के ज्ञान का स्रोत भी भारतीय ऋषियों से जुड़ा है….मगर अब यह बहुत कमजोर हैं। विज्ञान में तो यह हमारे सामने बच्चे हैं।’

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